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मोहब्बत
मैं कितनी मोहब्बत लुटाऊंँ तुम पर
सीखा कहांँ से तुम ने गरम मिजाज़ रखना
जितना चाहूंँ रहना ,अब मैं संग तेरे
आया कहांँ से तुमको यूंँ दूरदराज़ रखना
करले मस्त मलंगियां तू चाहे मन की
दिल की मुझको तू अपने हमराज़ रखना
रूठूं डांटूं बोलूं,भले ही तोड़ने को यारी
बिछड़न की उस ज़िद पर तू ऐतराज़ रखना
शाहजहां तुझे मान लिया है मेरे दिल ने
तू दिल के ताजमहल में मुझे मुमताज़ रखना
तन्हाई में तू भले ही पैर की जूती करले
नज़र में जग की किरन को सर का ताज़ रखना
सीखा कहांँ से तुम ने गरम मिजाज़ रखना
जितना चाहूंँ रहना ,अब मैं संग तेरे
आया कहांँ से तुमको यूंँ दूरदराज़ रखना
करले मस्त मलंगियां तू चाहे मन की
दिल की मुझको तू अपने हमराज़ रखना
रूठूं डांटूं बोलूं,भले ही तोड़ने को यारी
बिछड़न की उस ज़िद पर तू ऐतराज़ रखना
शाहजहां तुझे मान लिया है मेरे दिल ने
तू दिल के ताजमहल में मुझे मुमताज़ रखना
तन्हाई में तू भले ही पैर की जूती करले
नज़र में जग की किरन को सर का ताज़ रखना
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