...

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मैं खुद को बदलकर देखूंगा
सुनते सुनते दुनिया की मर सा गया था मैं
खुद से जीवन के अब दो पल जी कर देखूंगा

मुसीबतों से कभी डरता था बहुत मैं
पर अब उनसे टकराकर देखूंगा

फैलाता होगा उजाला सूरज रोज दुनिया में
मैं दिलों में अब उजाला फैलाकर देखूंगा

लगाकर मुझे फांसी जमाना खुश है बहुत
मगर विचारों में आग मैं लगाकर देखूंगा

स्याही जमी नहीं है कलम की अभी मेरी
इसलिए मैं कुछ नायाब लिखकर देखूंगा

पढ़ी जाए जो घर-घर बार-बार
कम से कम एक बार, ऐसी एक कविता लिखकर देखूंगा
© Ashutosh Kumar Upadhyay




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