सूखा सावन
सुनो सावन
मत बनो पिया से तुम
रूठे रूठे से क्यों हो अबकी बार
क्या हो गया हमसे कोई अपराध
कहो किस बात का भाव खा रहे हो
गीले होने चाहिए पर सूखे नज़र आ रहे हो
बादलों संग बड़े जोर शोर से आते हो
बिन बरसे फिर दूर निकल जाते हो
नव यौवन से अलंकृत धरा की
प्यास क्यों नहीं बुझाते हो ...
मत बनो पिया से तुम
रूठे रूठे से क्यों हो अबकी बार
क्या हो गया हमसे कोई अपराध
कहो किस बात का भाव खा रहे हो
गीले होने चाहिए पर सूखे नज़र आ रहे हो
बादलों संग बड़े जोर शोर से आते हो
बिन बरसे फिर दूर निकल जाते हो
नव यौवन से अलंकृत धरा की
प्यास क्यों नहीं बुझाते हो ...