...

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ज़िंदगी तेरे कितने रूप
कभी हंसा कर,कभी रुला कर
हालातों से साझा करवाकर
ज़िंदगी तू कितने रूप बदलती है
अंतर्मन की वेदना मेरी
जब भी तू पढ़ लेती है
उलझे ,बिखरे हालातों में
उड़ान हौसलों की भर देती है
हर एक दफा इक नए रूप में आकर
मुझसे तू उलझती है
कभी हंसा कर,कभी रुला कर
ज़िंदगी तू कितने रूप बदलती है