...

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सावन, चंद दिनों की दूरी
उनसे कुछ दिनों की दूरी हमें इतना सता रही है
ऊपर से ये बरसात हमरी जान लिए जा रही है

मौसमो का यू बदलना हमें नहीं भा रहा है
आसमा भी जैसे हम पर बिजलियां गिरा रहा है

फूलों की महेक हमें काटें चुभा रही है
सर्द हवाए जैसे तन को जला रहीं हैं

चाँद भी हमसे कुछ खफा सा लग रहा है
बिखेर कर अपनी चाँदनी हमारी जान ले रहा है

आसमान में...