प्रतिबिंब
#दर्पणप्रतिबिंब
एक तरफ प्रेम तुमसे ,एक तरफ विस्वास लिख रही हूं।
आज मैं दर्पण से ही सही , पर तुम्हारी शिकायत कर रही हूं।
तुम्हारी बातों के सारे , सबूत दे रही हूं।
तुम्हारी अनुपस्थिति में, तुम्हारे अक्ष से सब खुले आम कह रही हूं।
मैं खुद मे जी रही हूं तुमको ।
और खुद को संभाल रही हूं।
मैं रो लेती हूं कभी तो ,कभी तुम्हारी नदानियो पर...
एक तरफ प्रेम तुमसे ,एक तरफ विस्वास लिख रही हूं।
आज मैं दर्पण से ही सही , पर तुम्हारी शिकायत कर रही हूं।
तुम्हारी बातों के सारे , सबूत दे रही हूं।
तुम्हारी अनुपस्थिति में, तुम्हारे अक्ष से सब खुले आम कह रही हूं।
मैं खुद मे जी रही हूं तुमको ।
और खुद को संभाल रही हूं।
मैं रो लेती हूं कभी तो ,कभी तुम्हारी नदानियो पर...