...

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प्रतिबिंब
#दर्पणप्रतिबिंब
एक तरफ प्रेम तुमसे ,एक तरफ विस्वास लिख रही हूं।
आज मैं दर्पण से ही सही , पर तुम्हारी शिकायत कर रही हूं।
तुम्हारी बातों के सारे , सबूत दे रही हूं।
तुम्हारी अनुपस्थिति में, तुम्हारे अक्ष से सब खुले आम कह रही हूं।
मैं खुद मे जी रही हूं तुमको ।
और खुद को संभाल रही हूं।
मैं रो लेती हूं कभी तो ,कभी तुम्हारी नदानियो पर मुस्कुरा रही हूं ।
अक्सर अपनी प्यारी चीज छोड़कर ही कुछ पाना दुनिया का दस्तूर है न ।
तो देखो तुम्हारी कामियाब और अपनी आबादी के लिए छोड़ रही हूं तुम्हें ।
कहते है की प्रेम किया तो सफल बनाओ ।
करो जिससे उसी से ब्याह रचाओ ।
तो जरा तो एक बार बताओ ।
गर है प्रेम विवाह का साक्षी तो फिर मीरा क्यू है केशव बिन आधी ।।
क्यू राधिका सिर्फ श्याम की ,प्रेमिका ही रही क्यू नही बन पाई अर्धआगन्नी ।।
तो मैं प्रेम फिर निभा रही हूं ।
और आज प्रेम के पश्चात, होकर तुमसे दूर में वो इतिहास फिरसे दोहरा रही हूं।।











© sarthak writings