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विनायक दामोदर सावरकर
आओ सुनाऊं मैं तुम्हें ,
एक वीर की कहानी।
एक और था कालापानी तो,
दूसरी और था वह सेनानी।

उसके मुख में चमक थी और ,
आंखों में प्रकाश था ।
भारत की स्वतंत्रता ही ,
बस उसका आस था।

इस स्वप्न को पाने को ,
वह वीर था बड़ा चला।
कई कष्ट उसके सामने थे ,
पर वीर पुत्र था बढ चला।

वो विर और कोई नहीं
"दामोदर सावरकर" की नाद है ।
उनकी कथा सुनाना ही ,
आज मेरी आस है ।

यह बात 1911 की ,
जब हुआ था एक ऐसा कांड
राजद्रोह के नाम पर,
सावरकर की काली हुई पहचान ।

ना चाहते हुए जलपोत उसे ले चला ,
छोड़ दिया भारती पुत्र को ,
"काला पानी" की जगह ।
पर फिर भी उसके मुख्य में ,
क्या अलग ही प्रकाश था ।
मां भारती को वह पुत्र ,
तो बड़ा महान था।

सेल मे वह रहकर ,
हताश ना कभी हुआ ,
बल्कि अपने ज्ञान से ,
"कमला काव्य" रच दिया ।
एक ऐसा काव्य जिसमें ,
11000 पंक्तियां हैं ।
जेल की दीवारों में ,
उन्हें वह गढ़ दिया।

एक उनके जीवन की,
घटना सुना रहा हूं ।

आइरिस जेलर डेविड,
की घटिया बात बता रहा हूं ।
वह बार-बार चढ़ाता है,
उस महान वीर को ,
कहता था कि -
"अपना देश की स्वतंत्र
क्या देख पाएगा या 50 वर्ष
की सजा में क्या तेरी मौत आ जाएगा ।"

देखो उसे वीर को ,
वह क्या बोल है पड़ा:
" मिस्टर डेविड ! क्या तेरा देश 50 साल भी रह पाएगा ।"

कैसा भारती पुत्र था ,
वह कितना महान था।
विचार कितने पवित्र थे ,
वह विनायक कितना गुणवान था ।

उनके जन्म जयंती पर,
उन्हें अतः प्रणाम है ।
मां भारती ऐसी शक्ति दो ,
मेरा जीवन तेरे नाम है।
© श्रीहरि