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विनायक दामोदर सावरकर
आओ सुनाऊं मैं तुम्हें ,
एक वीर की कहानी।
एक और था कालापानी तो,
दूसरी और था वह सेनानी।

उसके मुख में चमक थी और ,
आंखों में प्रकाश था ।
भारत की स्वतंत्रता ही ,
बस उसका आस था।

इस स्वप्न को पाने को ,
वह वीर था बड़ा चला।
कई कष्ट उसके सामने थे ,
पर वीर पुत्र था बढ चला।

वो विर और कोई नहीं
"दामोदर सावरकर" की नाद है ।
उनकी कथा सुनाना ही ,
आज मेरी आस है ।

यह बात 1911 की ,
जब हुआ था एक ऐसा कांड
राजद्रोह के नाम पर,
सावरकर की काली हुई पहचान ।

ना चाहते हुए जलपोत उसे ले चला ,
छोड़ दिया भारती पुत्र को ,
"काला पानी" की...