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चंद दोहे
जुड़े हैं सब स्वार्थ से इक दूजे के संग
मुश्किल समय में देखिए सबके असली रंग
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सुख में सब साथ दें यही जगत की रीत
वक़्त पड़े जब जानिए, को बैरी को मीत
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काम, क्रोध, लोभ, मोह जी के सब जंजाल
यूं तो सब है जीवन में फिर भी सब कंगाल
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कैसे अब लोग हो गए कैसा आ गया दौर
काम पड़े कुछ और है काम सरे कुछ और
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मिथ्या सब वचन हैं मिथ्या सब संसार
जी रहे सब भ्रम में बन के सब लाचार
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अति मीठे जिसके वचन, मत करियो विश्वास
कड़वी जिसकी बानी, मन हो उसका साफ
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जैसे हों करम किसी के वैसा ही फल पाए
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाए
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दरिद्र के रूप में है नारायण का बास
तप करे पाताल में प्रकट होए आकाश
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लोक में परलोक में काम आए राम का नाम
सच कहा है आम के आम गुठलियों के दाम
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सफल होना चाहो तो काम दृढ़ निश्चय से कर
ओखली में सर दिया तो मूसल का क्या डर

© अमरीश अग्रवाल "मासूम"