पंखुड़ी इक गुलाब की हो तुम
पंखुड़ी इक गुलाब की हो तुम
इक नशा जाँ शराब की हो तुम
बिन तुम्हारे नहीं जलवा कोई
रूह सच में शबाब की हो तुम
कितनी मीठी तुम्हारी बोली है
बोल जैसे रबाब की हो तुम
अब तलक जो समझ न आई है
सीख कोई किताब की हो तुम
आओ खुल के मज़ा ले जीवन का
क्यूँ भला जाँ हिज़ाब की हो तुम
© All Rights Reserved
इक नशा जाँ शराब की हो तुम
बिन तुम्हारे नहीं जलवा कोई
रूह सच में शबाब की हो तुम
कितनी मीठी तुम्हारी बोली है
बोल जैसे रबाब की हो तुम
अब तलक जो समझ न आई है
सीख कोई किताब की हो तुम
आओ खुल के मज़ा ले जीवन का
क्यूँ भला जाँ हिज़ाब की हो तुम
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