...

4 views

वेद हूँ मै उपनिषद हूँ
#अनपढ़पन्ने
है खचाखच युवाओं से भरा हुआ पुस्तकालय
और खानों मे सजाए पुस्तकों के ढेर हैं।
आ रहे बच्चे उठाकर पढ़ रहे है पुस्तकें,
कुछ है नव अंकुर लिए बच्चे कुछ उनमें पेड़ है।
पढ़ रहे सारे ही पुस्तक,ज्ञान के विज्ञान के
पढ़ी जातीं पुस्तकें कवि "निराला"," मलखान "के।
किन्तु मै रक्खा अकेला एक कोने में पृथक
मुझको पढ़नेवाला मुझको दिख रहा ना दूर तक।
देखता हूँ राह कि मेरी तरफ कोई बढ़े
धूल की चादर हटाए वो मेरी,मुझको पढ़े
और बाकी पुस्तके हैं ज्ञान और विज्ञान की
किन्तु मुझमें हैं लिखी बातें तेरे पहचान की।
जब मेरा अध्यन करोगे स्वयं को पहचान लोगे,
कौन हो,आए कहाँ से,बात सारी जान लोगे
मुझको पढ़ने से ही जानोगे कि तेरा धर्म क्या है
है तेरा अस्तित्व क्या? आने का तेरा मर्म क्या है?
क्या उचित है क्या है अनुचित,जान पाओगे इसे,
क्या तेरा सत्कर्म है,पहचान पाओगे उसे।
तो करो मत देर आकर धूल मेरी झाड़ दो,
पढ़ के खोलो ज्ञान चक्षु, चेतना को धार दो।
गूढ़ है मुझको समझना,मै स्वयं ईश्वर का पद हूँ,
सृष्टि के है सार मुझमें,वेद हूँ मै उपनिषद हूँ।
© Kaushal