...

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" बीच समन्दर "
निकला जो बीच समन्दर ....
ना मस्जिद थी, ना कोई मंदिर था !!!!
ना कोई भरम था ....ना कोई धर्म था ....
बस दुआ थी🤲, और उसका☝️ कर्म था !!!!

दुनिया के ज़ख्मों का ....
यहाँ, बड़ा नमकीन मरहम था !!!!
ना कोई पर्दे की शर्म थी , ना कोई ज़ुबां से बेशर्म था !!!!
बस दुआ थी 🤲,और उसका☝️ कर्म था !!!!

पानी में पानी हुए ....
जितना डूबे , उतना ज्ञानी हुए !!!!
अंजान हो दुनिया से....दुनियादारी से बेमानी हुए !!!!
आए जो किनारे , देख़ दुनिया के नज़ारे ....
हुआ मिज़ाज, फिर गर्म था !!!!
दरयाई घोड़ा, दर्या में जो नर्म था ....
बस दुआ थी🤲, और उसका☝️ कर्म था !!!!

नीले आकाश तले, बस लहरों का शोर था ....
ना कोई और था, बस हवा का जोर था !!!!
चांदनी रातों में, अक्सर दर्या कठोर था ....
देख भौकाल नज़ारे, मन फिर भी विनम्र था ....
बस दुआ थी🤲, और उसका☝️ कर्म था !!!!

निकला जो बीच समन्दर ....

सुखविंदर ✍️🌄✍️

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© Sukhwinder

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