...

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युवा चलन
न पदवी है ,न सरकार
फिरते रहते बिना ध्यान
कितनी गलियां भरमाते
कहलाते है बेरोजगार ।
यूं तो कोई काम नही
ड्यूटी भी तो लगती नही
कोसते बस सुबह शाम
कहलाते है बेरोजगार ।
अति का इतना वक्त पड़ा
कि अन्न की सुध भी भूल गया
दिन से कब हो गयी है शाम
खोज खबर भी न इसको जान
जग के नाते कहां गये
व्यवहारिकता बलि चढ़ी
निद्रा से भी बैर हुआ
वक्त की इतनी बाढ़ है
कहलाते है बेरोजगार ।