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#अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
संसय -दुविधा पूर्ण जाल बुनता है
पुरवाग्रह , असंतुष्ट मतिभ्रमित हो
किस भांति देखो आघात करता है
अबोध बालक स्वरूप, अतृप्त असंतुष्ट
मानो अब कुछ शेष नहीं
ऐसा ही कुछ व्यवहार करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
हर शब्द कठोर बाण सा रच
प्रत्यंचा चढ़ा, घात करता सा
तीखी नज़र से घाव करता है
पर मूक रह कुछ भी न कह
शक्ति का बोध भरता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है।
© Gitanjali Kumari
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
संसय -दुविधा पूर्ण जाल बुनता है
पुरवाग्रह , असंतुष्ट मतिभ्रमित हो
किस भांति देखो आघात करता है
अबोध बालक स्वरूप, अतृप्त असंतुष्ट
मानो अब कुछ शेष नहीं
ऐसा ही कुछ व्यवहार करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
हर शब्द कठोर बाण सा रच
प्रत्यंचा चढ़ा, घात करता सा
तीखी नज़र से घाव करता है
पर मूक रह कुछ भी न कह
शक्ति का बोध भरता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है।
© Gitanjali Kumari
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