मां
जब सब फटकार लगाते थे
तब तू लाड़ लड़ाती थी
धूप छांव से बचा कर मुझको
अपने पास बुलाती थी
मैं भी था चंचल ना रूकता एक पहर
बाहर की दौड़ लगाता था
और घर घुसते ही मा मा करके
सारा घर सर पर उठाता था
फिर तू लाती खाना
और पहले डांट लगाती थी
सुबह से भूखा घूम रहा है
ऐसे कह कर खूब खिलाती थी
मेरी हर एक शिकायत तू पापा से छुपाती थी...
तब तू लाड़ लड़ाती थी
धूप छांव से बचा कर मुझको
अपने पास बुलाती थी
मैं भी था चंचल ना रूकता एक पहर
बाहर की दौड़ लगाता था
और घर घुसते ही मा मा करके
सारा घर सर पर उठाता था
फिर तू लाती खाना
और पहले डांट लगाती थी
सुबह से भूखा घूम रहा है
ऐसे कह कर खूब खिलाती थी
मेरी हर एक शिकायत तू पापा से छुपाती थी...