...

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मां
जब सब फटकार लगाते थे
तब तू लाड़ लड़ाती थी
धूप छांव से बचा कर मुझको
अपने पास बुलाती थी
मैं भी था चंचल ना रूकता एक पहर
बाहर की दौड़ लगाता था
और घर घुसते ही मा मा करके
सारा घर सर पर उठाता था
फिर तू लाती खाना
और पहले डांट लगाती थी
सुबह से भूखा घूम रहा है
ऐसे कह कर खूब खिलाती थी
मेरी हर एक शिकायत तू पापा से छुपाती थी और कोई लड़ ले मुझसे आके
फिर उसको फटकार लगाती थी
बचपन बीता आई जवानी
छुट गई सारी नादानी
अब हो गए समझदार
अब ना कोई शरारत करते हैं
जीवन की यह दौड़ लंबी
बस इसका पीछा करते हैं
कभी-कभी जब हो जाऊं हताश
फिर आके मुझे समझाती है
मेरा बेटा सबसे बेहतर
यह कहकर मेरा हौसला बढ़ाती है
ना कोई मां से बेहतर
मां है तो ना फिर कोई पत्थर
जीवन के हर मोड़ पर मा ए
बातें नई बताती है
कुछ हो दुख जीवन में पहले
मा ही याद हमें आती है
और जीवन तुझ बिन कुछ नहीं मां
तभी तो ममता की मूरत कहलाती है

© RAHUL PANGHAL