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न्याय है यही हमारा... ( स्त्री - एक न्यायिक विचार)
आये दिन हो रहा है,
हम लडकियों के अस्मत से खिलवाड़ ,
फिर भी न जाने क्यों चुप बैठा है ये संसार।
हम लडकियों की इज्जत क्या इतनी सस्ती है ,
ये दुनिया अंधे गूंगे बहरों की शायद इक बस्ती है।

नहीं सुनाई देती है उन्हें हमारी दर्द भरी चीख ,
तभी तो माँगनी पड़ती है अपने इंसाफ की भीख।
चिरकाल से अब तक हो रहे हैं हम पर अत्याचार,
फिर भी थम ना सका अब तक ये दुर्विचार ।

डरे हुये मासूम नवजात शिशु की तरह सहम -सी गई हूं मै भी देखकर इन दरिंदे हैवानों के रोज दिन के व्यभिचार,
लगता है जैसे पूरा लिखकर भी न लिख सकी घोर अत्याचार।
कपड़ों से लेकर रहन - सहन पर भी टिप्पणी कैसे ये कलुषित विचार,
प्यार के प्रतिकार में क्यों होता है संग हमारे ये दुर्व्यवहार।

आखिर क्यों चुप रहूं मैं, क्यों कुछ न कहूं, क्यों निष्ठुर हो रहा संसार,
पापी की कलुषित कृतघ्नता की हो रही हम स्त्रियाँ निशदिन शिकार।
आज दुर्योधन - दुशासन संग दोनों मिलकर कर रहा अत्याचार ,
दरिंदों के हवस की गंदी भूख की हम स्त्रियाँ क्यूं हो चली शिकार ।

अब न सहूंगी , न चुप रहूंगी चाहे कितना भी बड़ा हो हमपर अत्याचार,
सहनशीलता की सारी सीमाओं को कर चुके अब हम बहुत दूर तक पार ।
करना है अपनी अस्मत के लिए अपने मन मुताबिक बुराइयों पर प्रहार,
न रहने देगें अब दरिंदगी , न होगें देगें किसी और पर अब इस जहां में अत्याचार।

काली के उसी विकराल स्वरूप में करने निकलूंगी फिर से पापियों का संहार ,
ना करूंगी, न सहूंगी अब हम स्त्रियाँ एक भी अत्याचार।
जिसने जैसा किया, उसको वैसा ही मिलेगा अपराधों की सजा का संसार ,
अब लूंगी हर जुर्म का बदला, रोकूँगी अब स्वयं ही हम पर होने वाले हर अत्याचार ।।

— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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