न्याय है यही हमारा... ( स्त्री - एक न्यायिक विचार)
आये दिन हो रहा है,
हम लडकियों के अस्मत से खिलवाड़ ,
फिर भी न जाने क्यों चुप बैठा है ये संसार।
हम लडकियों की इज्जत क्या इतनी सस्ती है ,
ये दुनिया अंधे गूंगे बहरों की शायद इक बस्ती है।
नहीं सुनाई देती है उन्हें हमारी दर्द भरी चीख ,
तभी तो माँगनी पड़ती है अपने इंसाफ की भीख।
चिरकाल से अब तक हो रहे हैं हम पर अत्याचार,
फिर भी थम ना सका अब तक ये दुर्विचार ।
डरे हुये मासूम नवजात शिशु की तरह सहम -सी गई हूं मै भी देखकर इन दरिंदे हैवानों के रोज दिन के व्यभिचार,
लगता है जैसे पूरा लिखकर भी न लिख सकी घोर अत्याचार।
कपड़ों से लेकर रहन - सहन पर भी टिप्पणी कैसे ये कलुषित विचार,
प्यार...
हम लडकियों के अस्मत से खिलवाड़ ,
फिर भी न जाने क्यों चुप बैठा है ये संसार।
हम लडकियों की इज्जत क्या इतनी सस्ती है ,
ये दुनिया अंधे गूंगे बहरों की शायद इक बस्ती है।
नहीं सुनाई देती है उन्हें हमारी दर्द भरी चीख ,
तभी तो माँगनी पड़ती है अपने इंसाफ की भीख।
चिरकाल से अब तक हो रहे हैं हम पर अत्याचार,
फिर भी थम ना सका अब तक ये दुर्विचार ।
डरे हुये मासूम नवजात शिशु की तरह सहम -सी गई हूं मै भी देखकर इन दरिंदे हैवानों के रोज दिन के व्यभिचार,
लगता है जैसे पूरा लिखकर भी न लिख सकी घोर अत्याचार।
कपड़ों से लेकर रहन - सहन पर भी टिप्पणी कैसे ये कलुषित विचार,
प्यार...