...

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चिट्ठियाँ
खो गयी ना जाने कहाँ आजकल,
कभी ख़बरों की मिलती थी हलचल,
ये चिट्ठियाँ हो गयी है कहीं गुम...!

शुरू होती थी बड़ो के आदर संग,
और अंत मे लिखते थे छोटो को प्रेम,
मध्य में होता था लेखन,
कभी खुशियों का कभी गमों का,
खुश हो लेते थे पहले पढ़कर अपनो की खुशियां,
और छलक आती थी कभी आँखें गमों को...