...

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चेहरा
चेहरे के ऊपर लगाकर एक और चेहरा....
क्यों ? अपनी असलियत लोगों से छिपाते हो
लिए फिरते हो दो-दो पहचान साथ में
भला कैसे ?  यह जिंदगी खुलकर जी पाते हो,,!!

बातों से तो लगते हो बड़े सीधे-साधे....
लबों से भी काफी मुस्कुराते हो
रखते हो फिर भी मन के अंदर कड़वाहट
इतना जहर कहाँ से लाते हो,,,?

हर पल कहते हो, नही रखते बैर किसी से....
लेकिन प्रतिशोध में खुदको जलाते हो
देर होती है फिर एक गलती की
नफरत की इस आग में जान तक ले जाते हो,,!!

बहाकर अक्सर आँखों से मगरमच्छ के आँसूं....
दूसरों की बुराइयों के किस्से सुनाते हो
बताकर फिर खुदको भोला-भाला
आखिर कैसे ? अच्छाई का ढोंग रचाते हो,,,!!

घोलकर अपनी जुबां पर शक्कर-सी मिठास....
दुनिया के आगे संस्कारी बन जाते हो
मिलता है फिर जब कभी वार करने का मौका
भला कैसे ? पीठ पीछे खंजर चलाते हो,,,!!


© Himanshu Singh