...

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एक स्त्री का कविता करना...
एक स्त्री का कविता करना

एक स्त्री...
कविता गढ़ने के लिए
एकांत नही ढूंढती
किसी जलाशय के तट जाकर
आत्ममंथन नही करती
पहाड़ों में जाकर
शब्द नही ढूंढती
कागज कलम लेकर
हरी भरी वादियों में नही बैठती
खुले अंबर के नीचे बैठ
आसमान को निहारते हुए
भाव नही खोजती
एक स्त्री...
भाव ढूढती है
रोटियां बेलते हुए
शब्द चुनती है
बर्तनों को धुलते हुए
कभी कपड़ों में तह लगाते हुए
कभी सब्जी, दालों में
छौंक लगाते हुए
कभी घर को बुहारते हुए
गढ़ लेती है कविता
हृदय के कागज पर
हद है...
फिर भी तुम्हे अखरता है
एक स्त्री का कविता करना....।।

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© mayank varma