...

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पुकारो मुझे तुम
नही है अमराइयों के कानन
बसती हूँ कंक्रीटों के जंगलों में
तोड़ कर सारी वर्जनाये
फिर
पुकारो मुझे
नाम लो मेरा
कि गूँजे यह धरा

नही है सूरज की रोशनी
रहती हूँ कृत्रिम प्रकाशों में
भेद कर आकाश की तनहाइयों को
फिर
निहारो मुझे
कि चमके नैनो के जुगनू

नही बरसता रिमझिम सावन
जीती हूँ शुष्क प्रभंजन में
बरसा कर प्रेम फुहारें
फिर
आर्द्र कर दो मुझे
कि पुलकित हो काया का रोम रोम