मुतमइन हैं अब चीखें
#खालीअक्स
कार्यक्रम खत्म हुआ,
मैं मंच के एक किनारे चली गई,
और इंतजार करने लगी सबके जाने का,
फैल गई थी जो दिवारें भीड़ से,
हौले हौले,
उनके सिमट जाने का,
शीर्षक था,
खुद से मोहब्बत में सबको पीछे छोड़ देना,
तब ही दूरभाष की घंटी बजी और,
पैगाम आया कि,
घर जल्दी आ जाऊं,
दिल था ना कह दूं,
कुछ वक्त मैं भी खुद को तन्हा देना चाहती थी,
थोड़ी देर भीड़ से हट के,
खुद से मोहब्बत करना चाहती थी,
पर जब बहुत देर तक सोचने के बाद भी,
वहां रुकने,
और वहां से जाने का निर्णय ना कई पाई तो,
ढकेल दिया खुद को,
सीमेंट बालू वाले चमीकीले फर्श पर,
और आज्ञा दे डाली,
अपनी हथेलियों को,
वापस फिर से कुछ सुंदर सा पिरो देने के लिए,
पर जाने क्यों,
बहुत देर तक सोचने के बाद भी,
अपने लिए मुझे किसी शब्दकोष से बुलावा नहीं आया,
फिर...
कार्यक्रम खत्म हुआ,
मैं मंच के एक किनारे चली गई,
और इंतजार करने लगी सबके जाने का,
फैल गई थी जो दिवारें भीड़ से,
हौले हौले,
उनके सिमट जाने का,
शीर्षक था,
खुद से मोहब्बत में सबको पीछे छोड़ देना,
तब ही दूरभाष की घंटी बजी और,
पैगाम आया कि,
घर जल्दी आ जाऊं,
दिल था ना कह दूं,
कुछ वक्त मैं भी खुद को तन्हा देना चाहती थी,
थोड़ी देर भीड़ से हट के,
खुद से मोहब्बत करना चाहती थी,
पर जब बहुत देर तक सोचने के बाद भी,
वहां रुकने,
और वहां से जाने का निर्णय ना कई पाई तो,
ढकेल दिया खुद को,
सीमेंट बालू वाले चमीकीले फर्श पर,
और आज्ञा दे डाली,
अपनी हथेलियों को,
वापस फिर से कुछ सुंदर सा पिरो देने के लिए,
पर जाने क्यों,
बहुत देर तक सोचने के बाद भी,
अपने लिए मुझे किसी शब्दकोष से बुलावा नहीं आया,
फिर...