बुढ़िया
हुई रात चाँदनी जाग उठी,
सब पर्ण-दलों से झांक उठी।
तारे छिटपुट बिखरे से थे,
नव- निशा दृश्य निखरे से थे।
तब वृहत व्योम की छाँव तले,
थी पटसन की इक खाट डले।
एक बुढ़िया गाना गाती थी,
कोई लोरी गुनगुनाती थी।
सहसा हिय पट पर दृश्य चले,
लोचन निज चिंतन में जले।
पुत्रों की याद सताती थी,
शीतल- निशि भी न भाती थी।
पर अहो! व्यथा किससे कहे,
उर वेदना थी जो आप सहे।
वृद्धत्व की यही कहानी है,
सबको इक दिन ही बितानी है।
माटी का है यह जीर्ण बदन,
होना तो है सबका ही पतन।
मानव ये समझ नही पाता है,
स्वयं- दम्भ में जीता जाता है।
पर कर्म कहाँ ये भुलाता है,
सब सोच बुढ़िया ने आह भरी,
फिर थोड़ी सी एक करवट ली।
अगले दिन की इक आस लिए,
मन मे अटूट विश्वास लिए।
पुत्रों से पुनः मिल पाएगी,
मनोभूमि तरल हो आएगी।
© metaphor muse twinkle
सब पर्ण-दलों से झांक उठी।
तारे छिटपुट बिखरे से थे,
नव- निशा दृश्य निखरे से थे।
तब वृहत व्योम की छाँव तले,
थी पटसन की इक खाट डले।
एक बुढ़िया गाना गाती थी,
कोई लोरी गुनगुनाती थी।
सहसा हिय पट पर दृश्य चले,
लोचन निज चिंतन में जले।
पुत्रों की याद सताती थी,
शीतल- निशि भी न भाती थी।
पर अहो! व्यथा किससे कहे,
उर वेदना थी जो आप सहे।
वृद्धत्व की यही कहानी है,
सबको इक दिन ही बितानी है।
माटी का है यह जीर्ण बदन,
होना तो है सबका ही पतन।
मानव ये समझ नही पाता है,
स्वयं- दम्भ में जीता जाता है।
पर कर्म कहाँ ये भुलाता है,
सब सोच बुढ़िया ने आह भरी,
फिर थोड़ी सी एक करवट ली।
अगले दिन की इक आस लिए,
मन मे अटूट विश्वास लिए।
पुत्रों से पुनः मिल पाएगी,
मनोभूमि तरल हो आएगी।
© metaphor muse twinkle