...

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अतीत की चादर ओढ़ कर
अतीत की चादर ओढ़ कर
ए वक़्त तू कहाँ चला
जन्म हुआ अभी-अभी
वर्षों जब तुम गर्भ में पला

तू ही था न वो जो
धूप में जला
वर्षा पड़ने पर भी
तू रहा यथावत नहीं गला
अतीत की चादर ओढ़ कर
ए वक़्त तू कहाँ चला

अभी-अभी तो आया था
फिर सूरज ढलने पर कहाँ चला
लगाकर अंधेरे को गले
अपने साथ ही किए चले
अतीत की चादर ओढ़ कर
ए वक़्त तू कहाँ चला

क्या है तेरे संग जो साथ सब हो लेते हैं
मरते वक़्त भी दुहाई क्यों तेरी ही देते हैं
किसके पास कितना है
वर्षों या एक पल जितना है
अतीत की चादर ओढ़ कर
ए वक़्त तू कहाँ चला
© sushant kushwaha