...

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शब ए हिज्र
छोड़ा सफर में अक्सर ही तन्हा मुझे
किसी ने भी किनारा ना दिया
समझा सबने बेजान सा सामान मुझे
कभी किसी ने मेरा तकाजा न किया
बनाया सबने अपना सहारा मुझे
कभी किसी ने मुझे सहारा न दिया
रखा सबने मुझसे सिर्फ उम्मीद ही
मेरे हिज्र को किसी ने शब न दिया
अब तो रोना भी अच्छा नही लगता मुझे
कही मेरे आंसुओ को बेचारगी का इनलोगो ने नाम तो नहीं दिया ......!
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