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#प्रेम-परिभाषा
प्रेम महज़ एक शब्द नहीं
जीवन का आधार है....
स्वप्निल पंखों पर अंबर की
ऊँची  उड़ान का सार है....

खुशबू है महकते इत्र की
कभी दिल को चुभता शूल है....
परिजात सम महकता हुआ
कभी धधकता फ़ूल है....

क़जरारे नैनों में प्रेयसी के
ये काजल की बहार है.....
प्रतीक्षारत बिरहन की कभी
सावन-भादो सी अंसुवन धार है....

खट्टा-मीठा सा ये रिश्ता
अनुराग की पनप का एहसास है....
कहीं शक़ के भंवर में डूबा
कहीं आत्मीयता का विश्वास है.....

है आँसू की बूंदों में छिपे
सीप के मोती सा....
कहीं मंदिर में बांधे
धागे की मनौती सा....

कहीं पावन शीतल
बयार सा प्यारा.....
कहीं धूमिल तपित
वासना का है नजारा.....

कवियों की लेखनी
गीत-ग़ज़ल हैं इसमें तमाम.....
कहीं रौनक है महफ़िल की
कहीं है धूँ-धूँ जलता श्मशान......

समर्पित होता निश्चल हृदय
बिना कुछ पाने की आशा....
प्रेम तो प्रेम है...प्रेम की
कैसे बाँधू कोई परिभाषा_____
~Monika Agrawal ✒

© Monika Agrawal
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