...

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जब तुम आये ही नहीं...
अब देखो ना जान सफर पर जाना कैंसा...
जब तुम आये ही नहीं तो मिलना मिलाना कैंसा...?
जब इतने लम्हे गुज़ारे हैं इन्तिज़ार मे मैंने...
तो इस आखिरी लम्हे मे बिखर जाना कैंसा....?

साक़ी और भी थे और भी मैखाने थे....
बस एक बुत ही नहीं हज़ारों सनमखाने थे...!
जहाँ तेरी याद मे गुज़ारी थीं कई राते...