इकतरफ़ा इश्क़ का शहर-003
इकतरफ़ा इश्क़ का शहर- 003
जो चाहो, जिसको मानो, वो मुक्कदर कहाँ देता है
वो तो बस दफ़्न करने के लिए कब्र तैयार रखता है।
हमें थी उनकी फ़िक्र तो हम हाल लेने पहुँच गए,
नहीं तो शहरों में कोई किसी के घर कहाँ जाता है।
चलो हम तुम्हें प्यार नहीं करते हैं, ये कह दिया अब
लेकिन दिल-ए-आरज़ू पर पर्दा कोई कहाँ डालता है।
वो जो मुस्कुराते हुए हर दफ़ा, तुम हमसे बात करती थी,
खेल वहीं से बिगड़ा, नहीं तो हमारा दिल कहाँ मचलता है।
औऱ जो रही सही कसर थी वो तुम्हारी माँ ने पूरी कर दी,
नहीं तो दो पल के लिए आए शख़्स को बेटा कौन कहता है।
नुमायां थे हमारे इरादे हमेशा, कभी हमने छुपाया नहीं उसको,
इल्म तुमको भी था इसका, खैर मुहब्बत में ये बातें कहाँ होती हैं।
सारी ग़लती हमारी थी, लेकिन हम ग़लती क्यूँ माने
किस किताब में लिखा है, दिल लगाना ग़लत होता है?
बड़े हक़ से आते हैं हम, अब भी, अपने कूचा-ए-जानां में,
तुम न आओ बालकनी पर, ऐतराज़ थोड़ी न मानते हैं।
'शाश्वत' इस 'इक तरफ़ा इश्क़ के शहर' का अकेला शहंशाह है,
बस ख़लिश इस बात की है, कि यहाँ दूसरा कोई नहीं रहता है।
~शाश्वत
© Shashwat
जो चाहो, जिसको मानो, वो मुक्कदर कहाँ देता है
वो तो बस दफ़्न करने के लिए कब्र तैयार रखता है।
हमें थी उनकी फ़िक्र तो हम हाल लेने पहुँच गए,
नहीं तो शहरों में कोई किसी के घर कहाँ जाता है।
चलो हम तुम्हें प्यार नहीं करते हैं, ये कह दिया अब
लेकिन दिल-ए-आरज़ू पर पर्दा कोई कहाँ डालता है।
वो जो मुस्कुराते हुए हर दफ़ा, तुम हमसे बात करती थी,
खेल वहीं से बिगड़ा, नहीं तो हमारा दिल कहाँ मचलता है।
औऱ जो रही सही कसर थी वो तुम्हारी माँ ने पूरी कर दी,
नहीं तो दो पल के लिए आए शख़्स को बेटा कौन कहता है।
नुमायां थे हमारे इरादे हमेशा, कभी हमने छुपाया नहीं उसको,
इल्म तुमको भी था इसका, खैर मुहब्बत में ये बातें कहाँ होती हैं।
सारी ग़लती हमारी थी, लेकिन हम ग़लती क्यूँ माने
किस किताब में लिखा है, दिल लगाना ग़लत होता है?
बड़े हक़ से आते हैं हम, अब भी, अपने कूचा-ए-जानां में,
तुम न आओ बालकनी पर, ऐतराज़ थोड़ी न मानते हैं।
'शाश्वत' इस 'इक तरफ़ा इश्क़ के शहर' का अकेला शहंशाह है,
बस ख़लिश इस बात की है, कि यहाँ दूसरा कोई नहीं रहता है।
~शाश्वत
© Shashwat
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