इकतरफ़ा इश्क़ का शहर-003
इकतरफ़ा इश्क़ का शहर- 003
जो चाहो, जिसको मानो, वो मुक्कदर कहाँ देता है
वो तो बस दफ़्न करने के लिए कब्र तैयार रखता है।
हमें थी उनकी फ़िक्र तो हम हाल लेने पहुँच गए,
नहीं तो शहरों में कोई किसी के घर कहाँ जाता है।
चलो हम तुम्हें प्यार नहीं करते हैं, ये कह दिया अब
लेकिन दिल-ए-आरज़ू पर पर्दा कोई कहाँ डालता है।
वो जो मुस्कुराते हुए हर दफ़ा, तुम हमसे बात करती थी,
खेल वहीं से बिगड़ा,...
जो चाहो, जिसको मानो, वो मुक्कदर कहाँ देता है
वो तो बस दफ़्न करने के लिए कब्र तैयार रखता है।
हमें थी उनकी फ़िक्र तो हम हाल लेने पहुँच गए,
नहीं तो शहरों में कोई किसी के घर कहाँ जाता है।
चलो हम तुम्हें प्यार नहीं करते हैं, ये कह दिया अब
लेकिन दिल-ए-आरज़ू पर पर्दा कोई कहाँ डालता है।
वो जो मुस्कुराते हुए हर दफ़ा, तुम हमसे बात करती थी,
खेल वहीं से बिगड़ा,...