...

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मंजर भी रोयेगा
मेरी क़त्ल की तलब मे
हो कर तरबतर
मेरे ही खून से
वो खंजर भी रोयेगा

जब होगी नीरवता
न कोई शोर न कोई
बियाबां दिखेगा हुजूम में
उठती हुई मेरी अर्थी का
वो मंजर भी रोयेगा

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