...

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याद तुम्हारी जब आती है

Dr Arun Kumar shastri
याद तुम्हारी जब आती है
मन खट्टा हो जाता है
तरह तरह के अनुभव फिर से ये दोहराता है
याद तुम्हारी जब आती है।

दिल का मेरे कोना कोना रीता सा हो जाता है
याद तुम्हारी जब आती है।

तुमसे बिछुड़ के जब रोया था।
धरती और आकाश अशकों से मैंने भिगोया था रो रो कर मन मेरा ये पागल पपीहे सा तड़पा था किस्मत अपनी कोस रहा था
जब मैं तुमसे खूब लड़ा था।

आज लगा है तुम बिन मेरा सारा कारोबार लुटा है ।
याद तुम्हारी जब आती है।

दर्द हुआ है हल्का हल्का, सीना फटता और मन दुखता।
बिन पानी के मीन जगत में।
जैसे हो कोई तड़पता।
याद तुम्हारी जब आती है।
मन खट्टा सा हो जाता है
तरह तरह के अनुभव फिर से ये दोहराता है।
याद तुम्हारी जब आती है
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