...

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"हयात को मेरे आलोक करदो"
तुम अवर्णनीय हो,
तुम अवर्चनीय हो।
तुम्हारी बात क्या करूँ,
तुम अकल्पनीय हो।

देती इजाज़त यदि मुझे,
करता तेरा मैं यशगान।
सप्तसिंधु जैसी हो तुम,
हो तुम हिमालय सी महान।

हो तुम गंगा की निर्मल धारा,
तुम्हारे सौंदर्य से सजा
गुलशन सारा।
मरुत्वान में तुम छाँव जैसी,
शीतल पवन की तरह तुम
बहती।

तुम गेसुओं में गजरे के मानिंद,
हो तुम अल्हड रागपुष्प।
मेरे दिल के छज्जे पर आ
बैठी तुम मैना हो,
हो तुम मेरे जीवन की वासर
तुम मेरी रैना हो।

हे! चंद्रप्रभा अपने नूर से मुझें
आलौकिक कर दो,
प्यार के सप्तरंग भर दो।
प्राणधार बनके मेरी तुम,
हयात को मेरे आलोक
कर दो।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)
तिथि –२४ /०४ /२०२२

विक्रम संवत २०७९

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