जज़्बातों का सफ़र
हसरतों की ज़मीं में हिज़ की बेताबियाँ हैं, न उफ़ निकले,
न आह निकले, यह ज़रूरतों की परेशानियाँ हैं।
मकतब-ए-मोहब्बत में गिरिफ़तार ख्वाहिशें हैं,
खैर! तारीख गवाह है बेइंसाफ़ फ़िराक की।।
रूमानी सा तसव्वुर सही, काईदा-ए-कयामत है,
हर मंजर यहाँ इक, गर्दिश का टूटा ज़मानत है।
उसे आना...
न आह निकले, यह ज़रूरतों की परेशानियाँ हैं।
मकतब-ए-मोहब्बत में गिरिफ़तार ख्वाहिशें हैं,
खैर! तारीख गवाह है बेइंसाफ़ फ़िराक की।।
रूमानी सा तसव्वुर सही, काईदा-ए-कयामत है,
हर मंजर यहाँ इक, गर्दिश का टूटा ज़मानत है।
उसे आना...