...

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जिंदगी का सफर..
जिंदगी का सफर..
रह जाता है सिर्फ़ तन्हाइयों भरा
पिटारा यादों का वादा का.. टूटे अरमानों का
सोचता रह जाता है बैठ अकेले
बीते सफ़र का एक एक पल..
टटोलता है उन यादों बीच छुपी मिट्ठी जिंदगी..
ज़ी आता है पुनः उन बीते दिनों को
मिल आता है उन लोगों से जो बहुत
महत्वपूर्ण रहे थे कभी उसके लिए...
कुछ धुंधली पड़ रही यादों को धूल आता है
अश्रुपूरित नैनो से रिस आए अश्कों से
यादें समा लेती है कभी कभी इतना अपने में
कि खोया रह जाता है घंटो मन इनमें
फिर अचानक झटक सर अपना आ जाता है
वर्तमान में... चेहरे पर लिए उन पलों की
अनुभूतियों... को.. जो न मिटाई जा सकती हैं
ना पुनः गढ़ी...
शुन्य में एकटक देखता रहता है भूत बनते वर्तमान को...
© दी कु पा