यादो का कल
भावो की रचना ओढ़कर ,मृदुभाषी वारो को साधकर
अंजुम भरे स्नेह का ,फिरता लिए दिन रैन सा
अंतर्निहित अफसाना सा ,बनता बिगड़ता नित नवल
छेड़े तरन्नुम राग सा , शीतल मलय की वात सा
कोमल कभी चितचोर बन, पर ताकता हो अधीर सा
फाटक सिराहने हो खड़ा ,निहारता पथ भंगिमा
गोचर सा हो इस सफर पर,न टोकता किसी को मगर
स्यामल सलोने सुंदर अगर,झांसे मे बुनते कई प्रहर
विह्रवल कभी ,विध्वंसक भी,उबरे नही...
अंजुम भरे स्नेह का ,फिरता लिए दिन रैन सा
अंतर्निहित अफसाना सा ,बनता बिगड़ता नित नवल
छेड़े तरन्नुम राग सा , शीतल मलय की वात सा
कोमल कभी चितचोर बन, पर ताकता हो अधीर सा
फाटक सिराहने हो खड़ा ,निहारता पथ भंगिमा
गोचर सा हो इस सफर पर,न टोकता किसी को मगर
स्यामल सलोने सुंदर अगर,झांसे मे बुनते कई प्रहर
विह्रवल कभी ,विध्वंसक भी,उबरे नही...