रूबरू
जिंदगी मे उलझे हैं या फिर ज़िमेदारी है,
कुछ भी हो गालिब अब हमारी बारी है।
मौका मिले न मिले उसे छीन लेना है,
फिर चाहे हो चाँद तक पहुँचने की बात तो उड़ जाना है।
काटेंगे डोर कई यहाँ इस उधेड़बुन मे की आगे उन्हे भी निकलना है
लेकिन घबराना मत फल वाला वृक्ष ही झुकता है बस ये तुम्हे सबको सिखलाना है।
फिर हो मौसम कैसा भी तुम्हे अपने रंग मे सबको रंगना है,
इसी तरह से ये जीवन जीना ही तुम्हारा कर्तव्य तुम्हें बनाना है।
पूछेगे राह चलते कई की क्या हुई बात है,
लेकिन क्या बताओगे की एक ही मुलाकात मे सारा माजरा समझ अगया ऐसे हालात है।
संभाल अपने जज़्बात तुम्हे बड़ते चले जाना है,
आज नहीं तो कल तुम्हारा भी वक़्त बदलकर आना है।
© Paricha24
कुछ भी हो गालिब अब हमारी बारी है।
मौका मिले न मिले उसे छीन लेना है,
फिर चाहे हो चाँद तक पहुँचने की बात तो उड़ जाना है।
काटेंगे डोर कई यहाँ इस उधेड़बुन मे की आगे उन्हे भी निकलना है
लेकिन घबराना मत फल वाला वृक्ष ही झुकता है बस ये तुम्हे सबको सिखलाना है।
फिर हो मौसम कैसा भी तुम्हे अपने रंग मे सबको रंगना है,
इसी तरह से ये जीवन जीना ही तुम्हारा कर्तव्य तुम्हें बनाना है।
पूछेगे राह चलते कई की क्या हुई बात है,
लेकिन क्या बताओगे की एक ही मुलाकात मे सारा माजरा समझ अगया ऐसे हालात है।
संभाल अपने जज़्बात तुम्हे बड़ते चले जाना है,
आज नहीं तो कल तुम्हारा भी वक़्त बदलकर आना है।
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