...

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इंसान ही तो हो
कुछ में अब भी बहुत है भेदभाव।
भेद उन्हें करने देता हूं,
और भाव मैं रख लेता हूँ ।

किसी के बाप का नहीं है ये जहांन,
इंसान ही तो हो, तो बनके रहो इंसान ।

आईना देख कर बहुत इतराते होंगे,
घमंड में फिर कूचे मैले, टूटे पर बहुत
तरस खाते होंगे ।

पर चमड़ी वहीं, मास वहीं और सांस भी
वहीं । हां कुछ रंग अलग है
थोड़ा आराम से रहते,
थोड़ा अलग खाते होंगे।

पर इसका मतलब ये तो नहीं
कि खुद को समझो इस जहांन की शान।

याद रखो,

"किसी के बाप का नहीं है ये जहांन,
इंसान ही तो हो, तो बनके रहो इंसान ।

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