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ज़िद
उसकी तो शायद एक ज़िद ही थी ये
हर कोई बिन बोले उसको समझा करे।
मेरी भी तो एक ख़्वाहिश ये थी कि
वो जज़्बात अपने शब्दों में बयां करे।
ख़ामोशी से देखते राह एक दूजे की
इंतजार करते हैं, लेकिन न कहा करे ।
न तो दिल से निकालता है वो शख्स
न ज़िंदगी में शामिल वो किया करे।
© संवेदना 🌼
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