अपनी यात्रा भाग 1
स्त्री को कौन समझ सका है?
स्त्री जब स्वयं को ही ना समझ सकी
तो अन्य उसे क्या समझेंगे।
अपना विश्लेषण करते करते मैंने ये जाना कि ये जीवन चक्र है।स्त्री स्वयं को ही जीवन नही देती
अपितु पुरुष को भी जीवन देती है।ये जीवन बेल निष्कंटक चलती रहे इसके लिए कई बार उसे
मरना भी पड़ता है lशरीर के कई हिस्सों पर दाग ले कर चलना भी पड़ता है ।भूलना पड़ता है अपना अस्तित्व और ना जाने किन किन विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है ।
जीवन दायिनी को ये जीवन यापन कई बार अपने जीवन पर भारी भी पड़ जाता है।पानी की तरह ही तो है उसका जीवन, जहां जाती है उस ही रूप में ढल जाती है। कहते है इसलिए स्त्री की कोई जाति नहीं होती, जिस ने अपना लिया वही उसकी जात।
© Jyoti Dhiman
स्त्री जब स्वयं को ही ना समझ सकी
तो अन्य उसे क्या समझेंगे।
अपना विश्लेषण करते करते मैंने ये जाना कि ये जीवन चक्र है।स्त्री स्वयं को ही जीवन नही देती
अपितु पुरुष को भी जीवन देती है।ये जीवन बेल निष्कंटक चलती रहे इसके लिए कई बार उसे
मरना भी पड़ता है lशरीर के कई हिस्सों पर दाग ले कर चलना भी पड़ता है ।भूलना पड़ता है अपना अस्तित्व और ना जाने किन किन विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है ।
जीवन दायिनी को ये जीवन यापन कई बार अपने जीवन पर भारी भी पड़ जाता है।पानी की तरह ही तो है उसका जीवन, जहां जाती है उस ही रूप में ढल जाती है। कहते है इसलिए स्त्री की कोई जाति नहीं होती, जिस ने अपना लिया वही उसकी जात।
© Jyoti Dhiman