...

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तुम ,हम और फिसलता वक़्त
बैठे हों हम जैसे सागर किनारे।
नहीं कोई बस नज़दीकियाँ हो बीच हमारे॥

रोक लो इस जाते हुए पल को।
क़ैद कर लो सूरज को इन हथेलीयों में ,
रह जायँ बस आज में ना देखे कल को ॥

गवाह बने ये सागर ये शाम हमारी मुलाक़ात के ।
करते रहे यू लम्बी बातें बिना किसी बात के ॥

भर लूँ अपनी आँखो में ये मंजर ये ख़ूबसूरती तुम्हारी।
ग़म लेके तुम्हरे दे दु तुम्हें जहां भर की ख़ुशियाँ सारी॥




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