...

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आखिर कब तक😥

आज मै अस्थिर सी हूं जाने क्यों
इतनी गहरी सोच में डूबी हुई सी
आहत सा मन मेरा था जैसे कोई
चीख रहा हो दर्द से हो रहा हो वार जिसपर
आखिर कब तक चलेगा अत्याचार
धरती कराह उठती उन पापियों के बोझ से
जिनका भार अपने सीने में रखी है
उसी छाती को चीर रहे ये जुल्मी
आपस में ही खून के प्यासे बन बैठे
अपने ही संतानों का अत्याचार आखिर
कब तक सहेन करेगी वो मां
शायद विनाश की ओर जाती हुई
घड़ी की वो सुई जो कर रही इशारा
अंत का उन सभी का अंत
जिसने भी पाप का बीज बोया है
कोई लालच के वश में आकर
कोई मोह के जाल में तो कोई
तरक्की ,जबरदस्ती का अधिकार
हथियाने में हर किसी को उसके
कर्मो का फल तो मिलता ही है
फिर भी जाने क्यों लोग भूलकर
जाते है उस मां को
जिसने चलना सिखाया हो
अपनी ही गोद में ,
खाने के लिए अनाज उगाया हो
अपने ही सीने में,
उसी मां की हम सब संतान है
उसी को दर्द देते जा रहे हम
उसी की गोद में हम अपने ही लोगों
की जान ले रहे
उस मां की ही संतान होकर
उसी मां के संतान के संतान कि हत्या
आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा ?
क्या इस अत्याचार का अंत
कभी नहीं होगा ?
क्या वो मानव कभी नहीं सोचेगा?
क्या वो अपनी भूल को,
कभी नहीं सुधारेगा?
क्या वो अपनी बुरी संगति,
कभी नहीं छोड़ेगा?
क्या वो सच में सबका
विनाश देखना चाहता है?
क्या उसको अपने ही लोगों से ,
अपनी ही धरती मां से प्रेम नहीं है?
©anusingh
© anu singh