आखिर कब तक😥
आज मै अस्थिर सी हूं जाने क्यों
इतनी गहरी सोच में डूबी हुई सी
आहत सा मन मेरा था जैसे कोई
चीख रहा हो दर्द से हो रहा हो वार जिसपर
आखिर कब तक चलेगा अत्याचार
धरती कराह उठती उन पापियों के बोझ से
जिनका भार अपने सीने में रखी है
उसी छाती को चीर रहे ये जुल्मी
आपस में ही खून के प्यासे बन बैठे
अपने ही संतानों का अत्याचार आखिर
कब तक सहेन करेगी वो मां
शायद विनाश की ओर जाती हुई
घड़ी की वो सुई जो कर रही इशारा
अंत का उन सभी का अंत
जिसने भी पाप का बीज बोया है
कोई लालच के वश...