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शीर्षक- स्वार्थी दुनिया
शीर्षक- स्वार्थी दुनिया
दुनिया बहुत स्वार्थी है, दूजों के सपने चुराती है।
अपने को होनहार दिखाने के लिए, दूजों को नीचा दिखाती है।
खुदका स्वार्थ साधने को बहुत मीठा- मीठा बोलती है,
तुम्हारे सपने चुरा कर यह, होड़ में तुम्हारी दौड़ती है।
तुम्हें पसंद हो लिखना, तो तुम्हारा लिखा उन्हें कभी पसंद नहीं आएगा,
तुम्हारी होड़ से वो लिखेंगे, तो बड़ी शान से प्रेषित किया जाएगा।
तुमसे अच्छे हैं वो बार- बार यही...