दुनिया और हम
इस दिल को मैंने उम्मीद-ए-उल्फ़त से पाला था,
था बे-ख़बर कि ख़ुदा मेरी उम्मीदों से नाला था.
बेदर्द था हर वार और हर चोट के थे दाग़ गहरे,
इस शख़्सियत को हमने यूं दुनिया में ढाला था.
बस न पाए हम किसी भी घर में ज़्यादा वक्त तक,
नए पेंच-ओ-ख़म से जीने का बस ये हवाला था.
अब क्या ही रंग लाएंगी शिकायतें ये मुख़्तलिफ़,
जब हर किसी का दिल...
था बे-ख़बर कि ख़ुदा मेरी उम्मीदों से नाला था.
बेदर्द था हर वार और हर चोट के थे दाग़ गहरे,
इस शख़्सियत को हमने यूं दुनिया में ढाला था.
बस न पाए हम किसी भी घर में ज़्यादा वक्त तक,
नए पेंच-ओ-ख़म से जीने का बस ये हवाला था.
अब क्या ही रंग लाएंगी शिकायतें ये मुख़्तलिफ़,
जब हर किसी का दिल...