...

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दुनिया और हम
इस दिल को मैंने उम्मीद-ए-उल्फ़त से पाला था,
था बे-ख़बर कि ख़ुदा मेरी उम्मीदों से नाला था.

बेदर्द था हर वार और हर चोट के थे दाग़ गहरे,
इस शख़्सियत को हमने यूं दुनिया में ढाला था.

बस न पाए हम किसी भी घर में ज़्यादा वक्त तक,
नए पेंच-ओ-ख़म से जीने का बस ये हवाला था.

अब क्या ही रंग लाएंगी शिकायतें ये मुख़्तलिफ़,
जब हर किसी का दिल किसी गोशे से काला था.

बेहतरी की चाह में रहते हैं कुछ अहल-ए-कलम,
ये सोच कर ही शौक़ सुख़न-फ़हमी का पाला था.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

उल्फत - प्रेम (love)
नाला - नाराज़ (unhappy)
पेंच ओ ख़म - घुमावदार, टेढ़े मेढ़े (twist & turns)
हवाला - बहाना, सही तरीके से ना करना (excuse, not doing something in a right way)
मुख्तलिफ - विभिन्न, तरह तरह के (of different types)
गोशे - कोने (corners)
अहल ए कलम - साहित्य लिखने वाले, साहित्यिक सोच के व्यक्ति (people with literary tastes)
सुखन फहमी - काव्य का अच्छा बुरा समझने वाला (one who understands about poetry)
अर्ज़ किया है........
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