...

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गुजरते अजनबी
#गुज़रतेअजनबी

जब निगाहें निगाहों से मिलने चली,
कुछ था मन मनचला कुछ हवा मनचली।

शाम रौशन किया था किसी उजाला कहीं,
प्रेम एहसास में शाम मेरी ढली।

उसकी नजरें खुद की इबादत सी थी,
ट्रेन का था सफर, उससे खुशियां मिली।

बैठकर शोर सुनने लगा जब कभी,
यादें उसकी जेहन में तब मेरे खिली।

चल मुकद्दर नहीं साथ होने का पर,
चंद लम्हों की खातिर ही किस्मत मिली।

वो गुजर जाएगी, एक दौर की तरह,
ट्रेन का है सफर, मन में है खलबली।
© Dr.parwarish