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रामायण सार
रामायण सार
दस इंद्रियों के स्वामी दशरथ
जो कर्मेंद्रिया-ज्ञानद्रियां कहलाती है
कुशलता उनके संग में चलती, जानी कौशल्या के नाम से जाती है।।

आत्मा के प्रतीक है श्री राम जी
सीता चंचल मन कहलाती है
सजग होकर जो चलती हमेशा, दुनियां उस प्रेरणा को लक्ष्मण कहती है।।

त्याग की भावना जो हृदय बसती
भरत रूप बन जाती है
योद्धा बन जो विजय दिलाती, शत्रुघ्न वो संकल्पशक्ति कहलाती है।।

पवनपुत्र बन श्वास है चलती
जामवंत से; आत्मज्ञान की शिक्षा पाती है
योजना बनाकर जो कर्म है करते, सुग्रीव दुनियां उसको कहती है।।

विन्रम रूप में जो भावना बहती
निषादराज बन जाती है
अनुभव से जो हमें सिखाते, ऐसे जनक को दुनियां चाहती है।।

मन भटकाती मोह-माया जब
स्वर्ण मृग का रूप बनाती है
चंचल मन को मोहने लगती, आत्मा को भरमाती है।।

लक्ष्मण उसको सजग है करते
जो इंद्रियों के वश में होती है
बुद्धि-विवेक से काम न लेती,...