...

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मेरी मोहब्बत हो तुम
ज़िन्दगी की राह पर सजी हुई नायाब मोड़ हो तुम,
फ़ुरसत से रूबरू ज़िन्दगी कुर्बत की साज़ हो तुम।

मायुसिओं का सागर हटाए, महकती फ़िजा हो तुम,
एहतराम से सजी ज़िन्दगी, कोशिश नासाज़ हो तुम।

नजदिकियों का मंज़र सामने दिखता ताज हो तुम,
वक़्त बे-वक़्त छाए, हमारे इश्क़ की आगाज़ हो तुम।

ख़्वाबों का मकान जो बना, दरीचा-ए-ख़ास हो तुम,
तन्हाई का साथ छोड़, महफ़िल की सरताज़ हो तुम।

याद हमेशा जो ठिकाना, वो नाम और शान हो तुम,
सदियों से दिल की गीरह में छिपे मेरी मोहब्बत हो तुम।

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© LopaTheWriter