प्रतिकूलता और साध्य ✍️✍️✍️
वक़्त एक खामोश मदहोशी के साथ बेपरवाह गुजरता रहा
अच्छे बुरे वक़्त की डोर थामे जीवन मंझधार उतरता रहा
कभी कुछ पाने की ख़ुशी सब कुछ खोकर बुलंद सी रही
कभी खोने का दुःख ऐसा मानो स्वास मानिंद मंद सी रही
जीवन के पन्ने पलटते गए मै बस अंगूठा रखता चला गया
हर गुजरता हालात मुझसे गुजरता और मै बटता चला गया
वक़्त खुदको शकुनी समझ पासे डालता और जीत जाता
सब हारकर पांडवो जैसा खुदको कृष्णा के समीप पाता
जब भी खुदको अहमियत...
अच्छे बुरे वक़्त की डोर थामे जीवन मंझधार उतरता रहा
कभी कुछ पाने की ख़ुशी सब कुछ खोकर बुलंद सी रही
कभी खोने का दुःख ऐसा मानो स्वास मानिंद मंद सी रही
जीवन के पन्ने पलटते गए मै बस अंगूठा रखता चला गया
हर गुजरता हालात मुझसे गुजरता और मै बटता चला गया
वक़्त खुदको शकुनी समझ पासे डालता और जीत जाता
सब हारकर पांडवो जैसा खुदको कृष्णा के समीप पाता
जब भी खुदको अहमियत...