...

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dear pen 🖋️
अब लगता है तुम्हारे साथ चलते हुए भी काफी वक्त बीत गया है।
न जाने कब "क से ज्ञ"तक का सफर मैं और हम जैसे शब्दों में बदल गया।
न जाने कब "मैं और हम "का सफर भरी भरकम
पंक्तियों" में बदल गया।
न जाने कब " पंक्तियों" का सफर" कविताएं और कहानियो"में बदल गया।
ना जाने कब "कविताएं और कहानियों" का सफर
"एक किताब " में बदल गया।
ना जाने कब किसी की जिंदगी का सफर "उपन्यास" बन गया।
वाह रे! कलम तेरे साथ इस सफर में
ना ही वक्त का और ना ही पन्नो का अंदाज़ा लगा ।
तेरे साथ चलने की तलब से खुद को रोक न पाई।
जब पीछे मुड़कर देखी तो खुद को
तुझमें मदहोश पाई।





© annu_diary

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