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"माँ"
"माँ" तुम्हें सब दिखता है
के कहाँ पे उठता है
...कहाँ दुखता है,
तुम जानों सब मर्म यह जीवन के
तुम से कहाँ "माँ" कुछ.. छिपता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
तुम पवित्र सा कोई धाम हो "माँ"
तुम्हारे चरणों में सब दुख मिटता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
"माँ" तुम बिन यूँ दिन कटते हैं
के जैसे दिये से अंधेरा लिपटा है
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
"माँ" हँसी लिखती है लाखों ख़ुशियाँ
पऱ आँसु सिर्फ़.. तुम्हें लिखता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है!!
© बस_यूँही
के कहाँ पे उठता है
...कहाँ दुखता है,
तुम जानों सब मर्म यह जीवन के
तुम से कहाँ "माँ" कुछ.. छिपता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
तुम पवित्र सा कोई धाम हो "माँ"
तुम्हारे चरणों में सब दुख मिटता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
"माँ" तुम बिन यूँ दिन कटते हैं
के जैसे दिये से अंधेरा लिपटा है
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
"माँ" हँसी लिखती है लाखों ख़ुशियाँ
पऱ आँसु सिर्फ़.. तुम्हें लिखता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है!!
© बस_यूँही
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