...

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yaad
सार्वजनिक विचार...⊙

किसी को याद करने की भी...
अवधि होनी चाहिए...
कि समय समाप्त हो तो...
अवधि भी #समाप्त_हो_जाए...
अंततः कब तक इंसान...
किसी की याद ही में दिया जाये...
और अगर ऐसा है तो...
इसका कम से कम कोई...
समय तो निर्धारित हो...
वास्तव में हम ये जानते हुए भी...
कि वो व्यक्ति लौटकर न आयेगा...
किन्तु हम उसकी प्रतीक्षा में...
अपना समस्त जीवन...
किसी #तपस्या_की_भाँति...
विरह के अग्निकुण्ड में...
दकेलकर नष्ट करने के लिए...
सदैव तत्पर रहते हैं...
क्या ये किसी भी प्रकार से उचित है...
हाँ शायद आप लोग भी...
मेरी ही भाँति ये सोच रहे होंगे कि...
अंततः इसमें #अनुचित_क्या_है...?
अनुचित उसका न होना नहीं...
अपितु अनुचित ये है कि...
उसके न होने के कारण...
हम हमारे होने तक का सम्मान नहीं करते...
स्वयं को #अर्थहिन_समझने_लगते_हैं...
आजीवन किसी को...
याद बनाकर रखना...
ठीक उसी प्रकार से है...
जिस प्रकार से...
घाव की गहराई जानते हुए भी...
उसका उपचार न करवाना...
यह आपके लिए...
घातक भी सिद्ध हो सकता है...
अर्थात् आपकी पीड़ाओं को...
उनकी चरम सीमाओं तक पहुँचाकर...
आपको एक #विवश_प्राणी बना सकता है...
जिसका देह तो होगा...
किन्तु किसी भी भावना से लुप्त...
एक रिक्त श्रेणी का प्राणी...
आपके भीतर #वास_करने_लगेगा ॥

#अवधि🕧
#विचार_कीजिए✍️♥️🧔🏻

जय-विजय साहेब ॥