...

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धीरे धीरे ढल ये रात...
धीरे-धीरे ढल ए रात जरा,
अभी तो मुलाकात शुरू ही हुईं है..

सिलसिला वर्षों से जो रुका हुआ था,
अभी अभी तो वो शुरू हुईं है..

नज़रे नजरो से मुलाकात कर रही
जिस्म जिस्म को तराश रहे..
सांसों में सांसों का घुलना अभी शुरू हुआ है

की ऐ रात! तू ज़रा धीरे धीरे ढल,
कि जिस्मों का पिघलना अभी अभी शुरू हुआ है...
© दी कु पा