...

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कोई बात नहीं
वो खामोश बैठी है ऐसी कोई बात नहीं,
हँसी में उड़ा दो ऐसी कोई सौगात नहीं,
लव्जों में बंया कर सको एसा उसका मिजाज नहीं,
वो फिर भी कहती है चलो जाने दो कोई बात नहीं।

वो उड़ना चाहती थी उड़ने को पंख कहा,
चलना चाहती थी तो चलने को ज़मीन कहा,
वो काग़ज़ के पन्नो पे कहानी बनती चली गई,
कुछ राज़ अपने ही अंदर बुनती चली गई,
अकेली बंद रूह में ढलती चली गई,
उसकी हँसी भी पूछ लेती थी...