...

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तुम नहीं हो


मैंने तुम्हे ढूंढा
पुरानी तस्वीरों में
अपनी यादों के
घर में
वो चौक से
दाएं जाती हुई गली
जहां गोलगप्पे खाती थी तुम
मैने तुम्हे वहां भी ढूंढा

पर यार तुम नहीं मिली
इनमे से किसी भी जगह
तुम्हारे होने के निशान तक
मिट चुके थे जैसे

बेचैन मन भाग कर
घर के छत पर बने
छोटे से कमरे में रखे
पुराने संदूक से
मैली धूल में लिपटी
डायरी निकाल कर
देखा
कहीं तुम
मेरी कविताओं से भी
अपने निशान तो नही ले गई

कहीं खत्म तो नहीं हो गई
तुम पर लिखी सारी कविताएं भी
हमारे रिश्ते की तरह
आह!
तुम वहां हुबहू वैसी थी
जैसे मैंने रखा था
सजा कर

©प्रिया सिंह
04.06.23

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